देश के सबसे बड़े उद्योग समूहों में से एक अडाणी समूह के बारे में पिछले दिनों एक सनसनीखेज खुलासा हुआ है। अमेरिकी निवेश शोध फर्म हिंडनबर्ग ने कहा कि उसकी दो साल की जांच में पता चला है कि 'अडाणी समूह दशकों से 17.8 ट्रिलियन रुपयों के स्टॉक के हेरफेर और लेखा की धोखाधड़ी में शामिल था।' इसे सरल शब्दों में कहें तो हिंडनबर्ग का आरोप है कि अडाणी समूह ने अपनी कई कंपनियों के हिसाब-किताब को छिपाया है, उनमें हेरफेर की है, ताकि जमकर मुनाफा कमा सके। फर्म ने ये भी बताया है कि इस ग्रुप ने कई शैल कंपनियों के जरिए भी गड़बड़ियां की हैं। इस रिपोर्ट के आते ही भारतीय शेयर बाजार में उथल-पुथल मच गई है। रिपोर्ट के आने के बाद से भारतीय शेयर बाजारों ने अभी तक दो सत्रों में कारोबार किया है, जिसमें अडाणी समूह के शेयर 22 प्रतिशत तक गिर चुके हैं।
करीब 11 अरब डॉलर का नुकसान समूह को हुआ है। गौतम अडाणी की खुद की संपत्ति में भारी गिरावट दर्ज की गई है, जिसके चलते वह अमीरों की सूची में सातवें नम्बर पर पहुंच चुके हैं। हालांकि समुद्र से दो लोटा पानी निकल जाए, तो उसे घाटा नहीं कहते। लेकिन जो लोग बूंद-बूंद घड़ा भरते हैं, उनके लिए दो-चार बूंदों का छलक जाना भी बड़ा नुकसान होता है।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद शेयर बाजार के निवेशकों को भी बड़ा झटका लगा है। अर्थव्यवस्था में पहले ही उथल-पुथल मची हुई है। सरकार ने नोटबंदी और जीएसटी के बाद जिस तेजी से निजीकरण को बढ़ावा दिया है, उसके बाद आम आदमी अपनी जमा-पूंजी को लेकर सशंकित ही रहता है। नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या के भगोड़ा प्रकरणों के कारण आर्थिक हेराफेरी करने वाले रसूखदार लोगों पर कानूनी शिकंजे को लेकर भी निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता, क्योंकि ये सारे लोग इस देश के बैंकों से हजारों करोड़ लूटकर आराम से विदेश चले गए और जनता अपने पैसों को बट्टा खाते की भेंट चढ़ते देखते रह गई। इस माहौल में अगर एक और वित्तीय घोटाले के आरोप सामने आए हैं, तो घबराहट का माहौल बनना स्वाभाविक है।
आमतौर पर ऐसे हालात में सरकार खुद सामने आकर जनता को दिलासा देती है कि उसे घबराने की कोई जरूरत नहीं। लेकिन अभी तो सरकार की चुप्पी टूटने का ही इंतजार हो रहा है। वैसे अडाणी समूह ने हिंडनबर्ग फर्म के सारे आरोपों को खारिज किया है और उसे कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है। लेकिन हिंडनबर्ग ने कानूनी कार्रवाई का स्वागत करते हुए कहा है कि हम अपनी रिपोर्ट पर पूरी तरह से कायम हैं, और हमारे ख़िलाफ़ उठाए गए क़ानूनी कदम आधारहीन होंगे। जिस रिसर्च को अडाणी समूह ने खारिज किया है, उस पर फर्म का कहना है कि अडाणी ने हमारी 106 पन्नों की, 32 हज़ार शब्दों की और 720 से ज़्यादा उदाहरण के साथ दो सालों में तैयार की गई रिपोर्ट को 'बिना रिसर्च का' बताया है।
हिंडनबर्ग फर्म का कहना है कि हमारी रिसर्च के आखिरी में जो 88 सवाल हैं, अडाणी समूह के पास मौका है, कि उनका जवाब देकर खुद को निर्दोष साबित कर दे। उसका कहना है कि अगर अडाणी समूह गंभीर है, तो उसे अमेरिका में भी मुकदमा दायर करना चाहिए जहां हम काम करते हैं. हमारे पास कानूनी प्रक्रिया के दौरान मांगे जाने वाले दस्तावेजों की एक लंबी सूची है। आरोप और जवाब के इस सिलसिले को देखकर यह नजर आ रहा है कि हिंडनबर्ग फर्म झुकने वाली नहीं है। अब देखने वाली बात ये है कि क्या अडाणी समूह इस फर्म पर कहां और कैसे मुकदमा दायर करता है और इसका क्या फैसला आता है।
लेकिन इस बीच जो आशंकाएं देश में उठी हैं, उस पर कम से कम सरकार को बयान देने आगे आना चाहिए। क्योंकि सरकारी, सार्वजनिक निकायों को जो जब बेचा जा रहा था, तो अडाणी समूह उसके बड़े खरीदारों में शामिल रहा है। भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी और स्टेट बैंक में अडाणी समूह की कंपनियों ने भारी निवेश किया हुआ है। अडाणी की कंपनियों में एलआईसी ने करीब 77,268 करोड़ रुपये का निवेश किया है। अडाणी समूह के गिरते शेयरों से एलआईसी को 18 हजार करोड़ रुपये तक का नुकसान हुआ है।
देश के बहुसंख्यक मध्यमवर्गीय लोग जिंदगी के साथ और बाद की सुरक्षा के लिए एलआईसी की पॉलिसियों में अपनी पूंजी निवेश करते हैं। एलआईसी को किसी भी तरह का नुकसान होने का मतलब है सीधे-सीधे आम आदमी को नुकसान होना। प्रधानमंत्री मोदी को याद करना चाहिए कि सत्ता संभालने से पहले उन्होंने अच्छे दिनों का वादा ही नहीं किया था, काले धन की वापसी और हर खाते में 15 लाख पहुंचाने का दावा भी किया था। आप पैसे नहीं दे सकते, कोई बात नहीं, लेकिन देश में ऐसा माहौल भी नहीं बनना चाहिए कि खाते में जो पैसे हैं, वो भी निकल जाएं।
पिछले 9 बरसों में अडाणी समूह इतना बड़ा बन चुका है कि उसे ऐसे आरोपों से शायद कोई फर्क न पड़े। जब कोरोना काल में लोग आर्थिक बदहाली का शिकार हो रहे थे, उद्योग-व्यापार ठप्प हो रहे थे, उस दौर में अगर रोजाना लाखों-करोड़ों का मुनाफा अडाणी समूह कमा सकता है, तो फिर इस तरह के तूफानों में भी उनका बेड़ा पार हो ही जाएगा। डर इसी बात का है कि जैसे विशालकाय टाइटैनिक हिमशिला से टकराकर डूब गया, क्योंकि चालकों ने केवल उसका ऊपरी हिस्सा ही देखा था, गहराई में खतरा कितना ज्यादा है, इसका अनुमान उन्हें नहीं हो पाया, कहीं वैसा ही हाल भारतीय अर्थव्यवस्था का न हो जाए। दो दिन में आम बजट आने वाला है और अगले आम चुनावों के पहले का यह संभवत: आखिरी बजट है, इसलिए उम्मीद यही है कि भाजपा सरकार ने इसे लोक लुभावन बताया होगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कह चुकी हैं कि उन्हें मध्यमवर्ग के हालात का अनुमान है।
लेकिन क्या वे वित्तीय जगत में होने वाली गड़बड़ियों से अवगत हैं, क्योंकि शीर्ष की खामियों का असर अमूमन नीचे के लोगों को ही भुगतना पड़ता है। अडाणी समूह अपने ऊपर इल्जाम लगाने वाले लोगों के खिलाफ क्या कानूनी तरीके अपनाता है, यह उसका फैसला होगा, लेकिन सरकार को आम जनता के हितों का ध्यान रखते हुए अपनी ओर से इस मामले पर जांच के कदम उठाने चाहिए। विपक्ष की भी यही मांग है, जिसे सरकार नजरंदाज करे तो यह ठीक नहीं होगा।